सेवा के प्रेमी श्रवण कुमार माता पिता के सच्चे सेवक ॥
माँ बाप के प्यार की तो कोई सीमा ही नही है, वो तो हमेशा पुत्र-पुत्रियाँ को समानभाव से देखते हैं। एक बड़ी बात जो मालूम तो हर किसी को है, परंतु उसका स्मरण नही रहता हर माता पिता चाहते हैं कि उनका बेटा या बेटी बहुत क़ाबिल बने तमाम ख़ुशियों से भरे रहें उपलब्धि, पैसा कमाएँ लेकिन एक बात और उनके दिल में हमेशा रहती है कि वो अपनी संस्क्रति से अपने परिवार से हमेशा जुड़े रहें . पर आज के इस युग में पढ़ना लिखना नौकरी, पेशा, व्यवसाय तो सब कर ही रहे हैं, छोटा बड़ा वो अलग बात है और इस काम काज में इतने व्यस्त हो गये हैं की ज़्यादातर संख्या अपनी संस्क्रति से , अपने परिवार से बिछड़े हुए हैं। बहुत अच्छे पुत्र आज भी हैं जो अपने माँ बाप का श्रवणकुमार बनना चाहते हैं, ये ख़्याल आना भी अपने आप में बड़ी बात है। तो आज कि ये Blog हम अपने पुराने और हमेशा दिए जाने वाले उधारण को दोबारा विख्याती के साथ पढ़ते हैं। तो ये कहानी शुरू होती है जब- श्रवणकुमार अपने अंधे माता पिता को लेकर अयोध्या पहुँचते हैं, नाव से तो नाव वाला होता है वो भी उन्हें पहचान लेता हैं ,श्रवणकुमार उसे नाव के किराए के रूप में सतुआ देत...